जय पशुपतिनाथ (Aum Namah Shivya)

December 26, 2008

श्री दुर्गा जी की आरती – जगजननी जय (Arati Maa Durga)

श्री दुर्गा जी की आरती 

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥

तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥

राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वा†छाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥

दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥

तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥

मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥

हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
 This is my favorite arati since its encompasses many aspect of  Divine Mother,
JAI MAA DURGA
ॐ श्री दुर्गाये नमः

अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली (Ambe Tu Hai Jagdambe Kali)

आरती दुर्गा माताजी की

(अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली Ambe Tu Hai Jagdambe Kali)

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥


अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥


तेरे भक्त जनो पर माता, भीर पडी है भारी माँ।
दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी।
सौ-सौ सिंहो से बलशाली, है अष्ट भुजाओ वाली,
दुष्टो को पलमे संहारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥


माँ बेटे का है इस जग मे बडा ही निर्मल नाता।
पूत – कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता ॥


सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियो के दुखडे निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥


नही मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना माँ।
हम तो मांगे माँ तेरे मन मे, इक छोटा सा कोना ॥


सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियो के सत को सवांरती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥


चरण शरण मे खडे तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो,मॉ सकंट हरने वाली।
मॉ भर दो भक्ति रस प्याली,
अष्ट भुजाओ वाली, भक्तो के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

Ambe Tu Hai Jagdambe Kali
Jai Durge Khappar Wali
Tere Hi Gun Gaaye Bharati

!! O Maiya, Hum Sab Utarey Teri Aarti !!

Tere Jagat Ke Bhakt Janan Par Bhid Padi Hai Bhari Maa
Daanav Dal Par Toot Pado Maa Karke Singh Sawari
So So Singho Se Tu Bal Shali
Asth Bhujao Wali, Dushton Ko Pal Mein Sangharti

!! O Maiya, Hum Sab Utarey Teri Aarti !!

Maa Bete Ka Hai Ish Jag Mein Bada Hi Nirmal Nata
Poot Kaput Sune Hai Par Na Mata Suni Kumata
Sab Par Karuna Darshaney Wali, Amrut Barsaney Wali
Dukhiyon Ke Dukhdae Nivarti

!! O Maiya, Hum Sab Utarey Teri Aarti !!

Nahi Maangtey Dhan Aur Daulat Na Chaandi Na Sona Maa
Hum To Maangey Maa Tere Man Mein Ek Chota Sa Kona
Sab Ki Bigdi Banane Wali, Laaj Bachane Wali
Satiyo Ke Sat Ko Sanvarti

!! O Maiya, Hum Sab Utarey Teri Aarti !!

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October 10, 2008

नवदुर्गास्तोत्र (Nava Durga Strotam)

नवदुर्गास्तोत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरां ।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीं ॥
दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
पिण्डजप्रवरारूढा चन्दकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्मं चन्द्रघण्देति विश्रुता ॥
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्माता यशस्विनी ॥
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी ॥
एकवेणी जपाकर्णपूर नग्ना खरास्थिता ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धनमुर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥
श्र्वेते वृषे समारूढा श्र्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धीदा सिद्धीदायिनी

श्री दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)

Filed under: चालीसा, दुर्गा, Chalisa, durga, Kali, Lord Shiva, Shakti — shivu360 @ 8:34 am

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥ 


निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥ 

शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥ 

रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥ 

तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥ 

अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥ 

प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥ 

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रहृ विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ 

रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ॥ 

धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़कर खम्बा ॥ 

रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥ 

लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ॥ 

क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥ 

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥ 

मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥ 

श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ 

केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥ 

कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥ 

सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥ 

नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥ 

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥ 

महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥ 

रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥ 

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ 

अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥ 

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥ 

प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥ 

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ॥ 

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥ 

शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥ 

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ॥ 

शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ॥ 

शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥ 

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥ 

मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥ 

आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥ 

शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥ 

करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ॥ 

जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥ 

दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ॥ 

देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
ॐ श्री दुर्गायै नमः

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