जय पशुपतिनाथ (Aum Namah Shivya)

March 9, 2009

SHIVASHTAK – शिवाष्टक

श्री शिवाष्टक

आदि अनादि अनंत अखण्ड अभेद सुवेद बतावै ।
अलखअगोचररूपमहेस कौ जोगि जती-मुनि ध्यान न पावै ॥
आगम निगम पुराण सबै इतिहास ‍सदा जिनके गुण गावै ।
बडभागी नर नारि सोई जो साँब-सदाशिव कौ नित ध्यावै ॥
सृजन, सुपालन लय लीलाहित जो विधि हरिहररूप बनावै ।
एकहि आप विचित्र अनेक सुबेस बनाईकै लीला रचावैं ॥
सुन्दर सृष्टि सुपालन करिजग पुनिबन काल जु खाय पचावै ।
बड भागी नर-नारि सोई जो सांब सदाशिव कौ नित ध्यावै ॥
अगुन अनीह अनामय अज अविकार सहज निज रूप धरावै ।
परम सुरस्य बसन आभूषण सजि मुनि मोहन रूप करावै ॥
ललित ललाट बाल विधु विलसै रतन हार उर पै लहरावैं ।
बड्भागी नर-नारि सोई जो साँब सदाशिवको नित ध्यावैं ॥
अंग विभूति रमाय मसानकी विषमय भुजंगनि कौं लपटावैं ।
नर कपाल कर मुण्डमाल गल भालु चरम सब अंग उढावैं ॥
वीर दिगम्बर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं ।
बड्भागी नर-नारि सोई जो सांब सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥
सुनतहि दीन की दीन पुकार दयानिधि आप उबारन आवैं ।
पहुँच तहां अविलम्ब सुदारून मृत्यु को मर्म बिदारि भगावैं ॥
मुनि मृकंडु सुत की गाथा सुचि अजहुं विज्ञान गाइ सुनावैं ।
बड्भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव को नित ध्यावैं ॥
चाउर चारि जो फल धतूर के बेल के पात औ पानी चढावैं ।
गाल बजाय के बोल जो ‘हरहरमहादेव’ धनि जोर लगावैं ॥
तिनहि महाफल देयं सदाशिव सहजहि भक्तिमुक्ति सो पावैं ।
बड्भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥
बिनसिन दोषदु:ख दुरति दैन्य दारिद्रयं नित्यसुखशान्तिमिलावैं ।
आसुतोष हर पाप ताप सब निरमल बुद्धि चित बकसावैं ॥
असरन सरन काटि भवबंधन भव निज भवन भव्य बुलावैं ।
बड्भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥
औढ्सदानी, उदार अपार जु नैकु सी सेवा तें ढुरि जावैं ।
दमन अशान्ति, समन संकट बिरद विचार जनहिं अपनावैं ॥
ऐसे कृपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबही चलि जावैं ।
बड्भागी नरनारि सोई जो साँब सदाशिव कौं नित ध्यावैं ॥

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